Posts

Showing posts from April, 2020

उफ़्फ़ इरफान : तुमने पता नहीं कौन सा इस्लाम पढ़ लिया, अपनी मूर्खताओं से बाज़ आओ यार :सैयद शहरोज क़मर

Image
फोटो साभार : इरफान (फेसबुक पेज) एक बार का वाक़्या है। गली से जब एक जनाज़ा गुज़रा तो रसूल्लल्लाह सम्मान में उठ खड़े हो गए। सहाबियों (समकालीन शिष्यों) ने कहा, या रसूल्लल्लाह जनाज़ा किसी मुस्लिम का नहीं था। बोलने वाले की तरफ ज़रा तुर्शी अंदाज़ में अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया, क्या वो इंसान न था। लेकिन मियां तुम क्या जानो कि इंसानियत किस ख़ूबसूरत दुनिया का नाम है। तुम क्या जानो वो हदीस कि जो इंसान नहीं हो सकता, तो वो मोमिन हो ही नहीं सकता। तुम इरफ़ान खान जैसे क़द्दावर फ़नकार की मौत का मज़ाक़ उड़ा रहे हो। तीन दिन पहले जिनकी मां का इंतकाल हो गया और दो साल कैंसर से जूझते हुए इरफ़ान आज हम सबसे बिछुड़ गए। तुम तो बस फ़ित्नेबाज़ हो। कौन जन्नत में जाएगा और कौन दोज़ख़ में इसका ठेका ही तुमने ले लिया है। अल्लाह से लिखवाकर लाए हो तुम। तुम जैसे लोगों के सबब ही इस्लाम जैसे सनातन धर्म (दीन-ए-क़ैयीम) की दुनिया भर में छवि ख़राब हुई। तुम जैसे लोग कभी सलाम का जवाब न दो, तो कभी ग़ैर-मुस्लिम के पर्व-त्योहार की मुबारकबाद न दो जैसे जाहिलाना वीडियो वायरल करवाते हैं। क़ुरआन और हदीस में हुकुकुल एबाद (इंसान के साथ हक़-दायित्व) पर

जिस देश में आयी थी वही याद रहा, हो के बेवा भी मुझे अपना पति याद रहा...

Image
फोटो साभार : अनिल शर्मा (@anilsharma07) सोनिया गांधी पर मुनव्वर राणा साहब की कविता - रुख़सती होते ही मां-बाप का घर भूल गयी। भाई के चेहरों को बहनों की नज़र भूल गयी। घर को जाती हुई हर राहगुज़र भूल गयी, मैं वो चिडि़या हूं कि जो अपना शज़र भूल गयी। मैं तो भारत में मोहब्बत के लिए आयी थी, कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी। नफ़रतों ने मेरे चेहरे का उजाला छीना, जो मेरे पास था वो चाहने वाला छीना। सर से बच्चों के मेरे बाप का साया छीना, मुझसे गिरजा भी लिया, मुझसे शिवाला छीना। अब ये तक़दीर तो बदली भी नहीं जा सकती, मैं वो बेवा हूं जो इटली भी नहीं जा सकती। आग नफ़रत की भला मुझको जलाने से रही, छोड़कर सबको मुसीबत में तो जाने से रही, ये सियासत मुझे इस घर से भगाने से रही। उठके इस मिट्टी से, ये मिट्टी भी तो जाने से रही। सब मेरे बाग के बुलबुल की तरह लगते हैं, सारे बच्चे मुझे राहुल की तरह लगते हैं। अपने घर में ये बहुत देर कहाँ रहती है, घर वही होता है औरत जहाँ रहती है। कब किसी घर में सियासत की दुकाँ रहती है, मेरे दरवाज़े पर लिख दो यहाँ मां रहती है। हीरे-मोती

इस देश में जितना वक्त राजीव के साथ गुजारा है, उससे ज्यादा राजीव के बगैर गुजार चुकी हूं

Image
आपने देखा है न उन्हें। चौड़ा माथा, गहरी आंखे, लम्बा कद और वो मुस्कान। जब मैंने भी उन्हें पहली बार देखा, तो बस देखती रह गयी। साथी से पूछा- कौन है ये खूबसूरत नवजवान। हैंडसम! हैंडसम कहा था मैंने। साथी ने बताया वो इंडियन है। पण्डित नेहरू की फैमिली से है। मैं देखती रही। नेहरू की फैमिली के लड़के को। कुछ दिन बाद, यूनिवर्सिटी कैंपस के रेस्टोरेन्ट में लंच के लिए गयी। बहुत से लड़के थे वहां। मैंने दूर एक खाली टेबल ले ली। वो भी उन दूसरे लोगो के साथ थे। मुझे लगा, कि वह मुझे देख रहे है। नजरें उठाई, तो वे सचमुच मुझे ही देख रहे थे। क्षण भर को नज़रें मिली, और दोनो सकपका गए। निगाहें हटा ली, मगर दिल जोरो से धड़कता रहा। अगले दिन जब लंच के लिए वहीं गयी, वो आज भी मौजूद थे। वो पहली नजर का प्यार था। वो दिन खुशनुमा थे। वो स्वर्ग था। हम साथ घूमते, नदियों के किनारे, कार में दूर ड्राइव के लिए निकलते, हाथों में हाथ लिए सड़कों पर घूमना, फिल्में देखना। मुझे याद नहीं कि हमने एक दूसरे को प्रोपोज भी किया हो। जरूरत नही थी, सब नैचुरल था, हम एक दूसरे के लिए बने थे। हमे साथ रहना था। हमेशा। उनकी मां प्रध