उफ़्फ़ इरफान : तुमने पता नहीं कौन सा इस्लाम पढ़ लिया, अपनी मूर्खताओं से बाज़ आओ यार :सैयद शहरोज क़मर

फोटो साभार : इरफान (फेसबुक पेज)

एक बार का वाक़्या है। गली से जब एक जनाज़ा गुज़रा तो रसूल्लल्लाह सम्मान में उठ खड़े हो गए। सहाबियों (समकालीन शिष्यों) ने कहा, या रसूल्लल्लाह जनाज़ा किसी मुस्लिम का नहीं था। बोलने वाले की तरफ ज़रा तुर्शी अंदाज़ में अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया, क्या वो इंसान न था।
लेकिन मियां तुम क्या जानो कि इंसानियत किस ख़ूबसूरत दुनिया का नाम है। तुम क्या जानो वो हदीस कि जो इंसान नहीं हो सकता, तो वो मोमिन हो ही नहीं सकता। तुम इरफ़ान खान जैसे क़द्दावर फ़नकार की मौत का मज़ाक़ उड़ा रहे हो। तीन दिन पहले जिनकी मां का इंतकाल हो गया और दो साल कैंसर से जूझते हुए इरफ़ान आज हम सबसे बिछुड़ गए। तुम तो बस फ़ित्नेबाज़ हो। कौन जन्नत में जाएगा और कौन दोज़ख़ में इसका ठेका ही तुमने ले लिया है। अल्लाह से लिखवाकर लाए हो तुम। तुम जैसे लोगों के सबब ही इस्लाम जैसे सनातन धर्म (दीन-ए-क़ैयीम) की दुनिया भर में छवि ख़राब हुई। तुम जैसे लोग कभी सलाम का जवाब न दो, तो कभी ग़ैर-मुस्लिम के पर्व-त्योहार की मुबारकबाद न दो जैसे जाहिलाना वीडियो वायरल करवाते हैं।

क़ुरआन और हदीस में हुकुकुल एबाद (इंसान के साथ हक़-दायित्व) पर सबसे अधिक फ़ोकस है। अल्लाह खुद कहता है कि गर नमाज़, रोज़ा आदि हम मुआफ़ कर सकते हैं (गर तुम कहकर देखो), लेकिन यदि तुमने किसी इंसान के साथ ग़लत किया तो जबतक वो तुम्हें मुआफ़ न करे हम मुआफ़ नहीं कर सकते। तुम्हारी इबादत के लिए दूसरे मज़ाहिब के लोग अपनी इबादतगाहों को आज खोल रहे हैं, जोकि तुम्हारी रिवायत रही। तुम आज ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकते। एक बार ग़ैर-मुस्लिमों का एक वफ़द ( प्रतिनिधिमंडल) हुज़ूर से मिलने आया। उनकी इबादत का वक़्त हो गया, तो उन्होंने एस्क्युस किया। रसूल ने मस्जिद-ए-नबवी में ही उन्हें इबादत करने की इजाज़त दे दी।

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फोटो साभार : इरफान (फेसबुक पेज)

तुमने पता नहीं कौन सा इस्लाम पढ़ लिया। अपनी मूर्खताओं से बाज़ आओ यार। क्यों और रुसवा करवाने पर तुले हुए है। सुनो। प्रभुनारायण विद्यार्थी अपनी किताब हज़रत मोहम्मद की प्रेरक कथाएं में लिखते हैं, एक बार एक व्यक्ति ने किसी पक्षी का अंडा उठा लिया तो पक्षी उस अंडे के लिए बेचैन हो उठी। वो कातर दृष्टि से व्‍यक्‍त कर रही थी कि उसका प्रिय अंडा किसी ने उठा लिया हे। यह देखकर हज़रत मोहम्मद (सल्ल) करुणा से भर गए। और अपने मित्रों से पता लगाने का अनुनय किया। पता चला कि एक आदमी ने उसका अंडा उठा लिया है। तत्‍क्षण उन्‍होंने आदेश दिया कि जहां से अंडा उठाया है, वहीं जाकर रख दो।

यूँ ही नहीं बरनार्ड शॉ जैसे विद्वान ने कहा था कि इस्लाम जितना अच्छा है, वैसे मुसलमान नहीं।
इरफ़ान को जानते कितना हो। उमा भाई Umashankar Singh लिखते हैं, ' इरफ़ान बताते थे कि बचपन में वे पैर पटक कर चलते थे। इस पर उनकी मां चिल्लातीं कि ऐसे कैसे चल रहे हो! धरती कोसेगी तुम्हें। बाल इरफ़ान को ये नहीं समझ आता कि धरती कैसे कोस सकती है?? धरती बोलती है क्या?? फिर मां ने उन्हें बताया कि ज़र्रे-ज़र्रे में जान है। सबको महसूस करो। सबके कृतज्ञ बनो। किसी को तकलीफ़ न दो। धरती पर पैर ऐसे रखो कि बताशे भी कदम के नीचे आ जाएं तो टूटे नहीं।' ऐसी परवरिश हुई थी इरफ़ान की।

इरफ़ान की सहजता और भलमनसाहत को याद कर फिल्मकार भाई अविनाश दास Avinash Das एक आयोजन का ज़िक्र करते हैं, जिसके हीरो इरफ़ान ही थे। वो लिखते हैं, 'दूसरे दिन सुबह-सुबह आकर, इरफ़ान के आईआईसी छोड़ने से पहले मुझे वहां का हिसाब क्लियर करना था। आधी रात को घर पहुंच कर मैं सोया। सुबह नौ बजे इरफ़ान के फ़ोन से नींद खुली, तो मैंने हड़बड़ा कर कहा कि बस एक घंटे में पहुंच रहा हूं। इरफ़ान ने कहा कि कल वैसे ही तुम्हारा बहुत हैक्टिक रहा है। आने की ज़रूरत नहीं है, मैंने बिल क्लियर कर दिया है।
मैं थोड़ा अजीब फील करने लगा और उनसे कहा कि प्लीज़ ऐसा मत कीजिए। उन्होंने कहा कि अगली बार तुम दे देना और जल्दी से मुंबई आकर मिलो।'

- Syed Shahroz Quamar (Facebook Post)

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